काश मैं भी मर जाता! मौत को करीब से देखने के बाद कैसे परेशान करता है सर्वाइवर्स गिल्ट ?

Published on: 13 Jun 2025 | Author: Babli Rautela
Survivors Guilt: अहमदाबाद में 12 जून को एयर इंडिया की उड़ान AI171 के दुर्घटनाग्रस्त होने से 241 लोगों की मौत हो गई. इस हादसे में विश्वास कुमार रमेश, जो सीट 11A पर थे, चमत्कार से बच गए. उनका वायरल वीडियो, जिसमें वे मलबे से निकलते दिखे, ने 'सर्वाइवर्स गिल्ट' की चर्चा को फिर से जगा दिया. यह मानसिक स्थिति युद्ध से लौटे सैनिकों से लेकर आपदा में बचे लोगों तक को परेशान करती है.
सर्वाइवर्स गिल्ट वह मानसिक पीड़ा है, जो किसी भी तरह के हासदे में जीवित बचे लोगों को सताती है. उन्हें लगता है कि उनकी जिंदगी किसी और की मौत की कीमत पर बची है. यह शारीरिक चोट से ज्यादा गहरे मानसिक घाव छोड़ता है. बचे लोग सवालों में उलझ जाते हैं: 'मैं क्यों बचा?', 'क्या मैं किसी को बचा सकता था?', 'काश मैं भी मर गया होता!' यह गिल्ट डिप्रेशन, अकेलापन, और आत्मघाती विचारों में बदल सकता है.
टाइटैनिक की मिसाल
1912 में टाइटैनिक के डूबने से 1,500 से ज्यादा लोग मारे गए. जोसफ ब्रूस इस्मे, शिप के मालिकों में से एक, लाइफबोट में कूदकर बच गए. लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन में उन्हें 'टाइटैनिक का कायर' कहा गया. इस्मे ने अपनी सारी दौलत दान कर दी और स्कॉटलैंड के एक बंगले में अकेले रहने लगे. उनके आखिरी शब्द थे, 'काश मैं भी वहीं रह गया होता!' टाइटैनिक के कई बचे लोग इस गिल्ट से जूझते रहे.
द्वितीय विश्व युद्ध और वियतनाम युद्ध के बाद लौटे सैनिकों में यह गिल्ट साफ दिखा. 1960 के दशक में मनोवैज्ञानिक डॉ. विलियम नाइडरलैंड ने होलोकास्ट बचे यहूदियों पर शोध कर इसे 'सर्वाइवर्स सिंड्रोम' नाम दिया. वियतनाम युद्ध के बाद 'वियतनाम वेटरन्स अगेंस्ट द वॉर' रिपोर्ट में सैनिकों ने कहा, 'हम बचे, लेकिन हर दिन यही सवाल सताता है कि हम क्यों बचे?' वे अलग-थलग रहने, हिंसक होने, या आत्महत्या करने लगे.
हवाई हादसों, अग्निकांड, या प्राकृतिक आपदाओं में बचे लोग भी इस गिल्ट से जूझते हैं. 1972 के एंडीज हादसे में 16 बचे लोगों ने मृत साथियों का मांस खाकर जिंदगी बचाई, लेकिन कई को गिल्ट ने जीवनभर सताया.
अहमदाबाद हादसे का संदर्भ
विश्वास रमेश का अहमदाबाद हादसे में बचना एक चमत्कार था. लेकिन मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि वह सर्वाइवर्स गिल्ट का शिकार हो सकते हैं. 241 लोगों की मौत के बीच उनकी जिंदगी उन्हें बोझिल लग सकती है. संजय कपूर, जिनकी उसी दिन मृत्यु हुई, ने हादसे पर शोक जताया था. दिशा पाटनी और वीर दास जैसे सितारों ने भी संवेदना व्यक्त की.
गिल्ट से उबरने के उपाय
कॉग्निटिव बिहेवियरल थैरेपी (CBT) और ग्रुप थैरेपी इस गिल्ट को कम करने में मदद करती हैं. कई बचे लोग सामाजिक कार्यों, जैसे सड़क सुरक्षा अभियानों, से जुड़कर राहत पाते हैं. उदाहरण के लिए, सड़क हादसे में बचे लोग अक्सर सुरक्षा जागरूकता के लिए काम करते हैं.
अमेरिका और चीन जैसे देश सैनिकों में गिल्ट और PTSD को कम करने के लिए ब्रेन टेक्नोलॉजी, जैसे 'टारगेटेड न्यूरोप्लास्टिसिटी ट्रेनिंग', पर काम कर रहे हैं. इसमें इलेक्ट्रोड्स के जरिए दिमाग को प्रोग्राम किया जाता है ताकि भावनात्मक दर्द कम हो. लेकिन न्यूरोसाइंटिस्ट्स चेतावनी देते हैं कि यह तकनीक आम लोगों तक पहुंची तो नैतिक और मानसिक खतरे बढ़ सकते हैं.