Madrasi Camp Demolition: दिल्ली में चला बुलडोजर, मद्रासी कैंप की आधी रात में टूटी नींद; लोग बोले- हमारा क्या कसूर था?

Published on: 01 Jun 2025 | Author: Anvi Shukla
Madrasi Camp Demolition: दिल्ली के जंगपुरा इलाके में स्थित मद्रासी कैंप की झुग्गियों पर जब 1 जून की सुबह बुलडोजर चला, तो सैकड़ों परिवारों की आंखों के सामने उनकी पूरी ज़िंदगी मलबे में बदल गई. दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने यह कार्रवाई की, ताकि बारापुला नाले की सफाई हो सके और मानसून से पहले जलभराव को रोका जा सके.
65 वर्षीय जानकी और उनकी बहू सुमोधी, मलबे में बचे कुछ बर्तन, कपड़े और टूटी बाल्टियों पर बैठी उस घर को निहार रही थीं, जिसमें उन्होंने ज़िंदगी के 50 साल गुजारे थे. जानकी कहती हैं, 'जिस नाले के पास बसा, उसी ने हमें उजाड़ दिया. किसी ने सोचा भी नहीं था कि नाले के पास कोई कुछ बनाएगा.'
पुनर्वास की उम्मीद अधूरी, नरेला भेजने पर विरोध
इस बस्ती में 370 परिवार रहते थे, जिनमें से 215 को पुनर्वास के लिए नरेला में फ्लैट दिए गए, जबकि बाकी 155 को कोई विकल्प नहीं मिला. लेकिन नरेला के फ्लैटों की स्थिति भी बेहद खराब है. 'मैंने देखा है वहां के फ्लैट. पाइप, टाइलें सब चोरी हो चुके हैं, पानी-बिजली कुछ नहीं है,' कहते हैं 40 वर्षीय वीरन, जो अब कबाड़ बेचकर पेट पाल रहे हैं.
बच्चों की पढ़ाई अधर में, मां-बाप बेबस
12वीं कक्षा की छात्रा सेल्वी की बेटी दिल्ली तमिल एजुकेशन एसोसिएशन स्कूल में पढ़ती है. 'अब नरेला से आना-जाना संभव नहीं है. इस साल स्कूल बदलना भी नहीं हो सकता,' वे रोते हुए कहती हैं. उनके बेटे की पढ़ाई रामानुजन कॉलेज में है, जो वहीं पास में है.
'7-8 हजार कमाकर किराया कैसे देंगे?'
सुमोधी, जो पास के बंगलों में काम करती हैं, सवाल करती हैं, 'हम 7-8 हजार कमाते हैं. भोगल में 12 हजार का किराया कहां से देंगे?' उनके जैसे कई परिवार मजबूरी में भोगल, सराय काले खां और आश्रम में छोटे-छोटे किराए के घरों में रहने को मजबूर हैं. मद्रासी कैंप की यह तबाही सिर्फ ईंट-पत्थरों की नहीं थी, बल्कि एक पूरी संस्कृति, भाषा और समुदाय की पहचान भी मिटा दी गई. राहत और पुनर्वास की प्रक्रिया अधूरी है और सवालों के घेरे में.