मैटरनिटी लीव को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, क्या महिलाओं की जाएगी नौकरी?

Published on: 06 Jun 2025 | Author: Sagar Bhardwaj
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि मातृत्व अवकाश कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि हर कार्यरत महिला का मौलिक अधिकार है. कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए स्पष्ट किया कि मातृत्व और मातृत्व देखभाल संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और सम्मान के अधिकार का अभिन्न हिस्सा हैं. भारतीय औद्योगिक प्रबंधन परिषद (ICIM) के अध्यक्ष सतेंद्र सिंह ने इस फैसले को “महिलाओं के संवैधानिक और मानवाधिकारों की शानदार पुष्टि” करार दिया.
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले में एक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल की शिक्षिका से संबंधित है. 2017 में तलाक के बाद उन्हें दो बच्चों की कस्टडी मिली थी. 2018 में पुनर्विवाह के बाद 2021 में उनके तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश की मांग की गई, जिसे तमिलनाडु शिक्षा विभाग ने खारिज कर दिया. कारण था कि राज्य नियमों के अनुसार, दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को मातृत्व लाभ नहीं मिल सकता. मद्रास हाई कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा था.
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा: मातृत्व अवकाश का अधिकार महिलाओं के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में निहित है. दो से अधिक बच्चों के आधार पर मातृत्व अवकाश से वंचित करना मनमाना है. राज्य संकीर्ण प्रशासनिक नियमों से महिलाओं के स्वास्थ्य और मातृत्व अधिकार का हनन नहीं कर सकता.
ICIM अध्यक्ष का बयान
सतेंद्र सिंह ने कहा, “यह फैसला भारत की कार्यरत महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. यह न केवल महिलाओं के कानूनी अधिकारों को मजबूत करता है, बल्कि आधुनिक समाज में मातृत्व की विकसित समझ को भी दर्शाता है. मातृत्व एक पवित्र जिम्मेदारी है, कोई सांख्यिकीय सीमा नहीं.” उन्होंने जोर दिया कि ICIM उद्योगों और HR पेशेवरों में इस फैसले के प्रति जागरूकता फैलाएगा.
फैसले का प्रभाव
अब दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को स्वचालित रूप से मातृत्व अवकाश से वंचित नहीं किया जाएगा. नियोक्ताओं को व्यक्तिगत परिस्थितियों पर विचार करना होगा.