Supreme Court On Retired Judges: सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बाद भी हाईकोर्ट क्यों चुप? रिटायर्ड जजों की नियुक्ति में दिख रही सुस्ती!

Published on: 15 Jun 2025 | Author: Anvi Shukla
Supreme Court On Retired Judges: सुप्रीम कोर्ट द्वारा पांच महीने पहले हरी झंडी देने के बावजूद देश के उच्च न्यायालय अब तक सेवानिवृत्त जजों की अस्थायी नियुक्ति में रुचि नहीं दिखा रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश के किसी भी उच्च न्यायालय ने अब तक कानून मंत्रालय को इस संबंध में कोई प्रस्ताव नहीं भेजा है.
30 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने लंबित मामलों की गंभीरता को देखते हुए यह निर्णय लिया था कि उच्च न्यायालय अपने कुल स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या के 10% तक सेवानिवृत्त जजों की अस्थायी नियुक्ति कर सकते हैं. संविधान के अनुच्छेद 224A के तहत यह प्रावधान है कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को अस्थायी रूप से उच्च न्यायालयों में नियुक्त किया जा सकता है.
अब तक किसी हाईकोर्ट ने नहीं भेजा नाम
11 जून तक किसी भी उच्च न्यायालय की कॉलेजियम ने केंद्र सरकार को कोई नाम प्रस्तावित नहीं किया है. सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति का वही प्रक्रिया है जो मौजूदा जजों की नियुक्ति के लिए अपनाई जाती है—हाईकोर्ट कॉलेजियम नाम प्रस्तावित करता है, कानून मंत्रालय जांच के बाद उसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजता है, और फिर राष्ट्रपति की मंज़ूरी से नियुक्ति होती है. हालांकि, अस्थायी जजों की नियुक्ति में 'वॉरंट ऑफ अपॉइंटमेंट' की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन राष्ट्रपति की सहमति ज़रूरी होती है.
शर्तों में दी गई ढील, फिर भी सुस्ती क्यों?
2021 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ अस्थायी जजों की नियुक्ति की अनुमति दी थी. बाद में, विशेष पीठ (मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत) ने इनमें से कुछ शर्तों को शिथिल किया. अदालत ने यह भी कहा कि "अस्थायी जज किसी मौजूदा जज के साथ मिलकर पीठ में बैठेंगे और लंबित आपराधिक अपीलों का निपटारा करेंगे."
कानून क्या कहता है?
अनुच्छेद 224A के अनुसार, 'राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति की सहमति से किसी भी सेवानिवृत्त जज से उस राज्य के उच्च न्यायालय में अस्थायी रूप से न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है.' सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट अनुमति और प्रक्रियात्मक स्पष्टता के बावजूद, हाईकोर्ट कॉलेजियम क्यों सुस्त है? क्या प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी है या फिर कोई और कारण?