भारत के खिलाफ चीन के हथियार फेल, पाकिस्तान एयर फोर्स चीफ ने अमेरिका से मांगी मदद

Published on: 03 Jul 2025 | Author: Kuldeep Sharma
22 अप्रैल को भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी ठिकानों पर हुए भारतीय हमलों में चीन द्वारा सप्लाई किए गए एयर डिफेंस सिस्टम पूरी तरह बेअसर रहे थे. इसी के तहत पाकिस्तान ने एयर फोर्स चीफ को अमेरिकी F‑16 ब्लॉक 70 जेट, एयर डिफेंस सिस्टम और HIMARS जैसी टेक्नोलॉजी के लिए अमेरिका भेजा है. यह पहल पिछले महीने अमेरिकी यात्रा करने वाले सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के दौरे के बाद सुरक्षा सहयोग को और गहरा करने का संकेत देती है.
एक दशक में पहली बार, पाकिस्तान के वायुसेना प्रमुख ने वॉशिंगटन की यात्रा की है. इससे पहले, मई 2025 में पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मुलाकात कर रक्षा संबंधों को मजबूत करने की पहल की थी. उस दौर में भी पाकिस्तान ने अमेरिकी हथियारों पर भरोसा जताया था. पाकिस्तानी एयरफोर्स (PAF) प्रमुख जहीर अहमद बाबर सिद्धू का आगमन उसी कड़ी का हिस्सा है, जहाँ दोनों उच्चाधिकारियों ने रक्षा तकनीक एवं इंटेलिजेंस साझेदारी बढ़ाने पर चर्चा की.
अमेरिकी सैन्य नेतृत्व से बातचीत
सिद्धू ने अमेरिकी वायुसेना के चीफ ऑफ स्टाफ जनरल डेविड एल्विन के साथ, पेंटागन और विदेश विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की. इन बैठकों में उन्होंने F‑16 ब्लॉक 70 फाइटर जेट, AIM‑7 स्पैरो मिसाइल और HIMARS रॉकेट सिस्टम बैटरियों की खरीद पर बात की. दिल्ली के साथ गतिरोध और ऑपरेशन सिंदूर में चीनी सिस्टम की विफलता ने पाकिस्तान को आधुनिक और भरोसेमंद वायु रक्षा प्रणालियों की ओर प्रेरित किया है.
चीनी उपकरणों पर भरोसा टूटा
भारत की एयर स्ट्राइक में चीन के HQ‑9P और HQ‑16 सिस्टम असफल साबित हुए, जिससे पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व में बेचैनी बढ़ी. हालांकि चीन अभी भी पाकिस्तान का मुख्य रक्षा साझेदार है, लेकिन अब इस्लामाबाद ने अमेरिकी प्लेटफ़ॉर्म्स पर अपना भरोसा जताया है. विश्लेषक मानते हैं कि यह बैलेंसिंग एक्ट पाकिस्तान का संकेत है कि वह अपनी रक्षा अधिग्रहण नीति में चीन और अमेरिका के बीच संतुलन बनाए रखना चाहता है.
घरेलू प्रतिक्रिया और आगे की राह
पाकिस्तान में पहले मुनीर के ट्रम्प से मिलने के बाद भी तीखी प्रतिक्रियाएं आई थीं. कुछ नेताओं ने नोबेल शांति पुरस्कार नामांकन वापस लेने की मांग तक की. अब सिद्धू के दौरे ने एक बार फिर पाकिस्तान में राजनीतिक बहस छेड़ दी है. सरकार का कहना है कि वायुसेना को मजबूत करना प्राथमिकता है, जबकि आलोचकों का तर्क है कि पाकिस्तान को अपनी घरेलू ज़रूरतों और क्षेत्रीय तनाव को भी ध्यान में रखना चाहिए. आने वाले महीनों में 2026 के विधानसभा चुनाव और अफगानिस्तान की स्थिति भी रक्षा सहयोग की दिशा तय करेगी.