अजीब परंपरा, शादी से पहले तुड़वाने होते हैं दुल्हन को अपने दांत; जानें क्या है इस रस्म को निभाने की वजह
Published on: 16 Dec 2025 | Author: Km Jaya
नई दिल्ली: चीन में रहने वाले गेलाओ जातीय समूह की एक सदियों पुरानी परंपरा आज भी लोगों को हैरान करती है. इस परंपरा के अनुसार शादी से पहले दुल्हन को अपने एक या दो ऊपरी सामने के दांत तुड़वाने पड़ते थे. यह रस्म बेहद दर्दनाक मानी जाती थी और इसे विवाह की अनिवार्य शर्त समझा जाता था. मान्यता थी कि अगर महिला के ऊपरी दांत सुरक्षित रहे, तो इससे दूल्हे के परिवार पर अशुभ प्रभाव पड़ सकता है.
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक गेलाओ समुदाय चीन और वियतनाम में पाया जाने वाला एक जातीय समूह है. साल 2021 में चीन में उनकी आबादी करीब 6 लाख 77 हजार से ज्यादा आंकी गई थी. यह समुदाय मुख्य रूप से दक्षिणी चीन के गुइझोऊ प्रांत के पश्चिमी हिस्से में स्थित गेलाओ काउंटी में रहता है. ये लोग पारंपरिक रूप से खेती पर निर्भर रहे हैं और चावल इनका मुख्य अनाज है.
कहां मिलता है इस रस्म का प्रमाण?
गेलाओ समाज में जब कोई लड़की लगभग 20 वर्ष की होती थी, तो उसकी शादी की तैयारी शुरू हो जाती थी. इसी दौरान उसके सामने के ऊपरी दांतों में से एक या दो दांत जानबूझकर तोड़ दिए जाते थे. इस रस्म के सबसे पुराने लिखित प्रमाण दक्षिणी सोंग राजवंश के समय के अभिलेखों में मिलते हैं, जो इस परंपरा की प्राचीनता को दर्शाते हैं.
क्यों तोड़े जाते थे दांत?
इस रस्म के पीछे एक लोक कथा भी जुड़ी हुई है. कथा के अनुसार, कई वर्ष पहले एक गेलाओ युवती शादी से पहले अपने समुदाय के लिए फल इकट्ठा करते समय चट्टान से गिर गई थी, जिससे उसके सामने के दांत टूट गए. उसकी बहादुरी और त्याग से प्रभावित होकर समुदाय ने इसे सम्मान का प्रतीक मान लिया और धीरे धीरे यह प्रथा विवाह से पहले दांत तुड़वाने की रस्म में बदल गई.
कौन तोड़ता था दांत?
इस प्रक्रिया के दौरान एक विशेष अनुष्ठान किया जाता था. लड़की के मामा को सम्मानपूर्वक बुलाया जाता था और वही छोटे हथौड़े की मदद से दांत तोड़ते थे. अगर मामा जीवित न हों, तो मां की तरफ से किसी अन्य पुरुष रिश्तेदार को यह जिम्मेदारी दी जाती थी. दांत टूटने के बाद मसूड़ों पर तुरंत औषधीय पाउडर लगाया जाता था ताकि संक्रमण न हो.
क्या थी इसके पीछे की मान्यता?
कई मान्यताओं के अनुसार यह परंपरा परिवार की समृद्धि और संतान सुख से जुड़ी थी. कुछ लोग इसे सौंदर्य से भी जोड़ते थे. हालांकि आधुनिक समय में यह प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है. अब इसे केवल प्रतीकात्मक रूप में याद किया जाता है और समुदाय के लोग इसे व्यवहार में नहीं अपनाते.