2 करोड़ 40 लाख भारतीय किसानों पर मंडराया खतरा: अमेरिकी GM फसलों की अनुमति से कीमतों में गिरावट का डर

Published on: 02 Jul 2025 | Author: Sagar Bhardwaj
भारत सरकार 24 मिलियन सोयाबीन और मक्का किसानों की आजीविका की रक्षा और अमेरिकी टैरिफ से बचने के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है. “मिनी-ट्रेड डील” की बातचीत में जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलों का मुद्दा अड़चन बन रहा है.
जीएम फसलों का खतरा
अमेरिका 9 जुलाई से भारत पर 26% रेसिप्रोकल टैरिफ लागू करने की तैयारी में है, जिसमें 10% आधारभूत शुल्क पहले से लागू है. अमेरिका जीएम सोयाबीन और मक्का के लिए बाजार पहुंच चाहता है. 2020 में अमेरिका में 94% सोयाबीन और 92% मक्का जीएम थे. कृषि अर्थशास्त्री दीपक पारीक ने चेतावनी दी. “अमेरिकी जीएम फसलों के आयात से 24 मिलियन किसानों को भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा.”
पूर्व खाद्य प्रसंस्करण सचिव सिराज हुसैन ने कहा, “अगर सस्ते अमेरिकी सोयाबीन और मक्का के आयात की अनुमति दी गई, तो घरेलू कीमतें और गिर सकती हैं, जिससे किसानों की आजीविका प्रभावित होगी.” पिछले साल सोयाबीन की कीमत 4,000 रुपए प्रति क्विंटल थी, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,892 रुपए से कम थी. हुसैन ने जोड़ा, “अमेरिकी जीएम सोयाबीन पर ड्यूटी कम करने से 11 मिलियन किसानों को कीमतों में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है, जिससे बारिश पर निर्भर क्षेत्रों के गरीब किसान और प्रभावित होंगे.”
किसानों की चिंताएं
भारत में जीएम फसलों का मुद्दा संवेदनशील है. 2002 में बीटी कॉटन को मंजूरी मिलने पर कर्नाटक जैसे राज्यों में किसानों ने विरोध किया था. कंपाउंड फीड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दिव्या कुमार गुलाटी ने कहा, “बीटी कॉटन के अनुभव मिश्रित हैं—कुछ किसानों को लाभ हुआ, जबकि अन्य को लागत और कीट प्रतिरोध की समस्याओं का सामना करना पड़ा.” जीएम बीज अक्सर पेटेंटेड होते हैं, जिससे किसानों की बड़े कृषि व्यवसायों पर निर्भरता बढ़ती है. गुलाटी ने कहा, “जीएम बीजों को हर मौसम में खरीदना पड़ता है, जिससे छोटे और सीमांत किसानों को नुकसान हो सकता है.”
कृषि और संस्कृति
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने चेतावनी दी, “जीएम उत्पादों के प्रवेश से खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण और निर्यात प्रतिबंधों का खतरा है.” गुलाटी ने कहा, “भारत में कृषि केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक है. जीएम फसलों को विदेशी तकनीक के रूप में देखा जाता है, जो संप्रभुता के आधार पर विरोध को भड़काता है.”
इथेनॉल का रास्ता
हालांकि, सीमित मात्रा में अमेरिकी मक्का को इथेनॉल मिश्रण के लिए अनुमति देना भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है. नीति आयोग के एक पेपर, जिसे बाद में वापस ले लिया गया, ने सुझाव दिया कि जीएम मक्का को इथेनॉल के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. हुसैन ने कहा, “अगर मक्का आयात नहीं हो सकता, तो अमेरिका इथेनॉल आयात के लिए दबाव डाल सकता है.”