नेपाल में हुई ऐसी शोक सभा जिसमें पहुंचे भारत, चीन और नेपाल के लोग, सम्मान के साथ किया गया अंतिम संस्कार, जानें किसकी हुई मौत?

Published on: 14 May 2025 | Author: Garima Singh
Yala Glacier was declared dead: नेपाल के लांगटांग क्षेत्र में स्थित याला ग्लेशियर को मृत घोषित किए जाने के बाद उसका अंतिम संस्कार किया गया. यह एशिया में अपनी तरह का पहला और विश्व में तीसरा ऐसा मामला है. इस शोक सभा में भारत, चीन, और भूटान के ग्लेशियोलॉजिस्ट शामिल हुए, जिन्होंने स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर इस पर्यावरणीय हानि पर दुख जताया. यह घटना जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों की चेतावनी देती है।
याला ग्लेशियर, जो समुद्र तल से 5100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित था, 1970 के बाद से 66% तक सिकुड़ चुका था. यह ग्लेशियर 784 मीटर पीछे खिसक गया, जिसके कारण इसमें आवश्यक बर्फ नहीं बची. इसे मृत घोषित करने के बाद, नेपाल में एक शोक सभा आयोजित की गई, जिसमें वैज्ञानिकों और स्थानीय लोगों ने हिस्सा लिया. यह ग्लेशियर की मौत जलवायु परिवर्तन का एक गंभीर संकेत है. हमें तत्काल कदम उठाने होंगे.
जलवायु परिवर्तन का खतरा
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हिमालय क्षेत्र के 54,000 ग्लेशियरों में से अधिकांश इस सदी के अंत तक समाप्त हो सकते हैं. याला ग्लेशियर की मृत्यु इस खतरे का प्रत्यक्ष प्रमाण है. ग्लेशियरों के पिघलने से स्वच्छ पेयजल की कमी, सूखा, और समुद्र जलस्तर में वृद्धि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जो मानव जीवन के लिए खतरा बन सकती हैं. "यदि ग्लेशियर इसी तरह पिघलते रहे, तो भविष्य में मानव अस्तित्व पर संकट आ सकता हैं.
विश्व में ग्लेशियरों की मृत्यु
याला ग्लेशियर विश्व का तीसरा ग्लेशियर है, जिसे मृत घोषित किया गया। इससे पहले, 2019 में आइसलैंड का ओक ग्लेशियर और 2021 में मेक्सिको का आयोलोको ग्लेशियर मृत घोषित हो चुके हैं। वैश्विक स्तर पर अब तक 9 ट्रिलियन टन बर्फ के पिघलने का अनुमान है, जो पर्यावरण के लिए गंभीर संकट का संकेत है।
हिमालयी ग्लेशियरों का भविष्य
हिमालय क्षेत्र, जो भारत, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, और चीन के तिब्बत क्षेत्र को कवर करता है, ग्लेशियरों का एक महत्वपूर्ण केंद्र है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इनमें से अधिकांश ग्लेशियर इस सदी के अंत तक लुप्त हो सकते हैं. याला ग्लेशियर की मृत्यु इस संकट की गंभीरता को उजागर करती है. शोक सभा में शामिल होने के लिए वैज्ञानिकों और स्थानीय लोगों ने कठिन ट्रैकिंग के बाद ऊंचाई पर पहुंचकर इस आयोजन में भाग लिया.