'हमें साझेदार चाहिए, उपदेशक नहीं...,' जयशंकर का वैश्विक बदलावों को लेकर यूरोप पर साधा निशाना

Published on: 04 May 2025 | Author: Mayank Tiwari
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार (4 मई) को यूरोप पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि वह उभरते बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के साथ तालमेल बिठाने में जूझ रहा है. उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत “साझेदारों की तलाश में है, न कि उपदेशकों की.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,” आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम 2025 में जयशंकर ने कहा, “जब हम दुनिया को देखते हैं, हम साझेदार ढूंढते हैं, उपदेशक नहीं.खासकर ऐसे उपदेशक जो घर में वही नहीं करते, जो बाहर उपदेश देते हैं. यूरोप का कुछ हिस्सा अभी भी इस समस्या से जूझ रहा है. यूरोप अब वास्तविकता की जांच के दौर में है. क्या वे इस चुनौती का सामना कर पाएंगे, यह देखना होगा. साझेदारी के लिए समझ, संवेदनशीलता, आपसी हित और विश्व की कार्यप्रणाली की वास्तविकता को समझना जरूरी है.
Pleased to join @ORGrimsson and @samirsaran for a conversation at the #ArcticCircleIndiaForum2025.
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) May 4, 2025
Spoke about the global consequences of developments in the Arctic. And how the changing world order impacts the region.
Underlined 🇮🇳’s growing responsibilities in the Arctic,… https://t.co/792OAcGcnS pic.twitter.com/F15ao3T9M2
बहुध्रुवीय विश्व की चुनौतियां
जयशंकर ने वैश्विक परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अमेरिका हाल के समय में अधिक आत्मनिर्भर हो गया है, जबकि यूरोप पर बदलाव का दबाव है. उन्होंने कहा, “हम अब उस स्थिति पर पहुंच गए हैं, जहां दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली कोई भी महत्वपूर्ण घटना हमारे लिए मायने रखती है. अमेरिका आज पहले की तुलना में कहीं अधिक आत्मनिर्भर है.
यूरोप पर बदलाव का दबाव है. बहुध्रुवीयता की वास्तविकताएं उस पर हावी हो रही हैं, लेकिन वह अभी इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाया है.” उन्होंने यह भी कहा कि विश्व अब अधिक प्रतिस्पर्धी और जटिल हो गया है.
आर्कटिक में भारत की बढ़ती भूमिका
जयशंकर ने भारत के ध्रुवीय क्षेत्रों में बढ़ते जुड़ाव पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि भारत पिछले 40 वर्षों से अंटार्कटिका में सक्रिय है और हाल ही में आर्कटिक नीति के माध्यम से इस क्षेत्र में अपनी भागीदारी बढ़ा रहा है. उन्होंने कहा, “हमारी आर्कटिक में बढ़ती भागीदारी है। अंटार्कटिका में हमारी मौजूदगी 40 साल से अधिक पुरानी है. कुछ साल पहले हमने आर्कटिक नीति बनाई। स्वालबार्ड में केएसएटी के साथ हमारे समझौते अंतरिक्ष के लिए महत्वपूर्ण हैं. सबसे युवा आबादी वाले देश के रूप में, आर्कटिक में होने वाली घटनाएं हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.”
जलवायु परिवर्तन और आर्कटिक का वैश्विक प्रभाव
जयशंकर ने जलवायु परिवर्तन के आर्कटिक पर प्रभाव को रेखांकित करते हुए कहा कि यह क्षेत्र नए शिपिंग मार्ग खोल रहा है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को बदल रहा है. उन्होंने कहा, “आर्कटिक की दिशा वैश्विक प्रभाव डालेगी, यह सभी के लिए चिंता का विषय है. ग्लोबल वार्मिंग नए मार्ग खोल रही है, और प्रौद्योगिकी व संसाधन वैश्विक अर्थव्यवस्था को नया आकार देंगे.”
भू-राजनीतिक महत्व और भारत की जिम्मेदारी
जयशंकर ने आर्कटिक के भू-राजनीतिक महत्व पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, “बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव ने आर्कटिक की वैश्विक प्रासंगिकता को और बढ़ा दिया है. आर्कटिक का भविष्य विश्व की घटनाओं, विशेष रूप से अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था में होने वाली बहसों से जुड़ा है.”
आर्कटिक सर्कल के चेयरमैन और आइसलैंड के पूर्व राष्ट्रपति ओलाफुर राग्नार ग्रिम्सन ने कहा कि भारत का आर्थिक भविष्य आर्कटिक संसाधनों पर निर्भर करेगा. उन्होंने भारतीय अर्थशास्त्रियों से इस क्षेत्र पर ध्यान देने का आग्रह किया.