बीआर गवई 14 मई से संभालेंगे मुख्य न्यायाधीश का पद, राष्ट्रपति मुर्मू ने नियुक्ति को दी मंजूरी

Published on: 29 Apr 2025 | Author: Mayank Tiwari
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार (29 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई को 14 मई, 2025 से भारत का सीजेआई नियुक्त किया है. इसकी जानकारी केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर X पर शेयर की. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना ने आधिकारिक तौर पर जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई के नाम को मंजूरी के लिए केंद्रीय कानून मंत्रालय को भेज दिया था. ऐसे में जस्टिस गवई के भारत के 52वें सीजेआई बनने का रास्ता खुल गया था.
सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लिखा, "भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई को 14 मई, 2025 से भारत के सीजेआई के तौर पर नियुक्त करते हुए काफी खुशी हो रही है.
In exercise of the powers conferred by the Constitution of India is pleased to appoint Shri Justice Bhushan Ramkrishna Gavai, Judge of the Supreme Court of India as the Chief Justice of India with effect from 14th May, 2025.
— Arjun Ram Meghwal (@arjunrammeghwal) April 29, 2025
अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले दूसरे CJI होंगे जस्टिस गवई
बता दें कि, जस्टिस गवई 14 मई को 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लें. जहां सीजेआई संजीव खन्ना 13 मई को रिटायर हो रहे हैं. जस्टिस केजी बालाकृष्णन, जिन्हें 2007 में देश के शीर्ष न्यायिक पद पर पदोन्नत किया गया था, इसके बाद जस्टिस बीआर गवई मुख्य न्यायाधीश का पद संभालने वाले दूसरे दलित होंगे.
जानें जस्टिस गवई के कौन-कौन से फैसले एतिहासिक रहे?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश के रूप में जस्टिस गवई कई ऐतिहासिक फैसलों में शामिल रहे हैं, जिनमें मोदी सरकार के 2016 के विमुद्रीकरण के फैसले को बरकरार रखना. इसके साथ ही इलेक्शन बांड योजना को असंवैधानिक घोषित करना शामिल रहा है.
जस्टिस गवई के कानूनी करियर पर एक नजर!
मिली जानकारी के अनुसार, जस्टिस गवई ने अपना करियर साल 1985 में शुरू किया. इसके बाद साल 1987 में बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू करने से पहले उन्होंने पूर्व महाधिवक्ता का काम किया. जस्टिस गवई ने संवैधानिक और प्रशासनिक कानून पर ध्यान केंद्रित किया और कई नागरिक और शैक्षिक निकायों का प्रतिनिधित्व किया, जिनमें नागपुर और अमरावती नगर निगम, अमरावती विश्वविद्यालय और SICOM और DCVL जैसे राज्य संचालित निगम शामिल थे.
उन्हें 1992 में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक नियुक्त किया गया. हालांकि, बाद में वे 2000 में उसी पीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक बने.