40 साल की महिला नहीं हो पा रही थी प्रेग्नेंट, कई बार IVF भी हुआ फेल, AI के चमत्कार से बनी मां

Published on: 12 Apr 2025 | Author: Mayank Tiwari
दुनिया में पहली बार एक ऐसे बच्चे का जन्म हुआ है जिसे रोबोट द्वारा किए गए स्पर्म इंजेक्शन के जरिए गर्भ में स्थापित किया गया. दरअसल, 40 वर्षीय महिला, जो पारंपरिक आईवीएफ प्रक्रियाओं से गर्भधारण में असफल रही थीं, उसको शोधकर्ताओं ने एक अनूठे प्रयोग के लिए चुना. इस प्रक्रिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद ली गई.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, आईवीएफ की एक प्रमुख तकनीक इंट्रासायटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI) है, जिसमें एकल शुक्राणु को प्रयोगशाला में अंडाणु के भीतर डाला जाता है. यह तकनीक 1990 के दशक से पुरुष बांझपन के मामलों में कारगर मानी जाती है. हालांकि, यह प्रक्रिया प्रशिक्षित भ्रूण विशेषज्ञों द्वारा हाथ से की जाती है, जहां इंसानी गलतियों की संभावना बनी रहती है.न्यूयॉर्क स्थित कंसीवेबल लाइफ साइंसेज के एक्सपर्ट जैक्स कोहेन ने कहा, “भ्रूण विशेषज्ञ भी अन्य पेशेवरों की तरह थकते और विचलित होते हैं, जिससे गर्भधारण की संभावना घट जाती है.
23 चरणों की प्रक्रिया अब मशीन से संभव
इसी समस्या को हल करने के लिए डॉ. कोहेन और उनकी टीम ने एक ऑटोमैटिक मशीन विकसित की है जो ICSI की सभी 23 चरणों को AI की मदद से संचालित करती है. ये मशीन न केवल सबसे स्वस्थ शुक्राणु का चयन करती है, बल्कि उसकी पूंछ को ज़ैप कर उसे निष्क्रिय कर देती है ताकि उसे उठाना आसान हो सके. इस बीच चीफ इंजीनियर प्रोफेसर गेरार्डो मेंडिज़ाबाल-रुइज़ ने कहा,“AI प्रणाली स्वचालित रूप से शुक्राणु का चयन करती है, उसे लेजर से स्थिर करती है और फिर सटीकता के साथ अंडाणु में इंजेक्ट करती है.
मेक्सिको में हुआ सफल परीक्षण
मेक्सिको के ग्वाडलहारा स्थित एक आईवीएफ क्लिनिक में इस तकनीक का परीक्षण एक महिला पर किया गया जिसे डोनर एग से इलाज मिल रहा था. उसके साथी के शुक्राणु तैरने में अक्षम थे. इस महिला के पांच अंडाणुओं में रोबोट द्वारा स्पर्म इंजेक्ट किए गए, जिनमें से चार का सामान्य निषेचन हुआ. उनमें से एक भ्रूण से एक स्वस्थ बच्चे का जन्म हुआ.
भविष्य में लागत होगी कम- डॉ. कोहेन
डॉ. कोहेन का मानना है कि “आईसीएसआई प्रक्रिया का यह ऑटोमेशन एक क्रांतिकारी समाधान है, जो सटीकता, दक्षता और स्थायित्व में बड़ा बदलाव ला सकता है. हालांकि, एक्सपर्ट जॉयस हार्पर कहती हैं कि इस तकनीक के ज्यादा इस्तेमाल से पहले और बड़े टेस्टों की जरूरत है.