कैंसर का ट्रीटमेंट होने के बाद खत्म हो जाती है SEX करने की इच्छा, डॉक्टरों ने बताई हैरान कर देने वाली बात

Published on: 12 May 2025 | Author: Gyanendra Tiwari
कैंसर से जूझने के बाद जब इलाज पूरा होता है, तो अधिकतर मरीज सोचते हैं कि अब जीवन सामान्य हो जाएगा. बाल वापस आ जाते हैं, अस्पताल के चक्कर कम हो जाते हैं और जांच की रिपोर्ट भी ठीक आने लगती है. लेकिन इस सबके बीच एक और गहरी समस्या छिपी होती है, जिस पर कम ही बात होती है. यौन इच्छा यानी सेक्स की चाहत में कमी.
कैंसर के इलाज के बाद कामेच्छा में कमी केवल हार्मोन या शारीरिक बदलाव की वजह से नहीं होती. यह एक जटिल अनुभव होता है जिसमें भावनात्मक आघात, शरीर की छवि को लेकर चिंता, और इलाज के दुष्प्रभाव शामिल होते हैं.
वरिष्ठ सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. देवाशीष चौधरी बताते हैं, “कैंसर का प्रकार चाहे जो भी हो, असल असर इलाज का होता है. कीमोथेरेपी, रेडिएशन और हार्मोनल थेरेपी, खासकर वे जो हार्मोन बनाने वाले अंगों को निशाना बनाती हैं, यौन इच्छा को बहुत हद तक प्रभावित करती हैं.”
हार्मोन का बदलता संतुलन
शरीर में यौन इच्छा का संबंध मुख्य रूप से एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरोन जैसे हार्मोन से होता है. स्तन कैंसर या प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में दिए जाने वाले हार्मोनल उपचार इन हार्मोन को दबा देते हैं, जिससे कामेच्छा में तेज़ गिरावट आती है.
सीके बिरला अस्पताल, दिल्ली के डॉ. मनदीप सिंह मल्होत्रा के अनुसार, “80% से ज्यादा कैंसर मरीज किसी न किसी रूप में यौन समस्याओं का सामना करते हैं. यह समस्या हर किसी में अलग होती है लेकिन सबसे ज़्यादा असर कीमोथेरेपी और हार्मोन थेरेपी में देखा जाता है.”
लंबे समय तक रहने वाला असर
2023 में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आया कि कैंसर से ठीक हुए करीब आधे मरीजों ने 5 से 10 साल बाद भी अपनी यौन जिंदगी को पहले से कम संतोषजनक बताया. इसमें न केवल शारीरिक लक्षण जैसे थकान और दर्द जिम्मेदार हैं, बल्कि मानसिक कारण जैसे चिंता और अवसाद भी बड़ी भूमिका निभाते हैं.
ग्लेनीगल्स बीजीएस अस्पताल, बेंगलुरु के डॉ. राजीव विजयकुमार बताते हैं, “कई महिलाएं मुझसे कहती हैं कि डॉक्टर, मुझे अब भी इच्छा महसूस नहीं होती.” खासतौर पर वे युवा महिलाएं जो कैंसर के दोहराव को रोकने के लिए जबरन मेनोपॉज़ में भेजी जाती हैं, उनमें हार्मोन में भारी गिरावट आती है. इसका परिणाम होता है. सूखा वजाइना, दर्द, और अंतरंगता में असहजता.
पुरुष भी झेलते हैं असर
यह मानना गलत होगा कि केवल महिलाएं कैंसर इलाज के यौन दुष्प्रभाव झेलती हैं. पुरुषों में भी प्रोस्टेट या टेस्टिकुलर कैंसर के बाद इरेक्टाइल डिसफंक्शन, स्खलन की समस्या और आत्मविश्वास की कमी आम हैं. डॉ. विजयकुमार कहते हैं, “कई पुरुषों को ऐसा लगता है जैसे वे हर बार परीक्षा दे रहे हों, और असफलता का डर उनकी इच्छा को ही खत्म कर देता है.”
मानसिक प्रभाव भी गंभीर
शारीरिक बदलावों के साथ-साथ कैंसर से उबरने के दौरान मानसिक चुनौतियाँ भी कम नहीं होतीं. शरीर पर निशान, स्टेरॉयड से वजन बढ़ना, या खुद को आकर्षक न मानना—ये सभी बातें मरीज की आत्मछवि पर असर डालती हैं और यौन संबंधों को प्रभावित करती हैं.
डॉ. चौधरी कहते हैं, “कई बार शरीर भले ही ठीक हो जाए, लेकिन आत्मविश्वास और आत्म-संवेदना पर पड़ा असर सालों तक बना रहता है.”
चर्चा की कमी
2022 में भारत में 14.6 लाख से अधिक नए कैंसर के मामले सामने आए. फिर भी, यौन स्वास्थ्य पर बहुत कम चर्चा होती है. डॉ. मल्होत्रा मानते हैं, “अधिकतर मरीज खुद इस विषय को उठाने से हिचकते हैं, और कई डॉक्टरों के पास इसे समझने या संबोधित करने के लिए समय या प्रशिक्षण नहीं होता.”
हालांकि कुछ आधुनिक अस्पताल अब यौन स्वास्थ्य को इलाज के बाद की देखभाल में शामिल कर रहे हैं, लेकिन अधिकांश मरीज अकेले ही इस मुश्किल दौर से गुजरते हैं.
क्या सब कुछ पहले जैसा हो सकता है?
कई लोग पूछते हैं—क्या यौन जीवन दोबारा सामान्य हो सकता है? डॉ. चौधरी कहते हैं, “कुछ मामलों में हां, लेकिन इसके लिए समग्र प्रयास की जरूरत होती है.” हार्मोन थेरेपी, पेल्विक फिजियोथेरेपी, सेक्स काउंसलिंग और सबसे ज़रूरी—साथी के साथ खुलकर बात करना—बहुत जरूरी है.
अगर सब कुछ पहले जैसा न हो सके, तो अंतरंगता की परिभाषा को फिर से गढ़ना पड़ता है. डॉ. चौधरी के अनुसार, “सच्ची बात, भावनात्मक जुड़ाव और धैर्य अब यही संबंधों की नई बुनियाद हैं.”
सेक्स थेरेपिस्ट ऐसे कपल्स की मदद कर सकते हैं जो शारीरिक अंतरंगता के नए रास्ते खोजना चाहते हैं, जो केवल शारीरिक संबंध तक सीमित नहीं हैं.
डॉ. विजयकुमार एक सशक्त उदाहरण देते हैं: “एक स्तन गंवा चुकी महिला को उसके साथी से यह सुनना कि वह अब भी खूबसूरत है, वह बात किसी भी दवा से ज्यादा असर करती है.”