मध्य प्रदेश में साइबर ठगों की मौज, 4 साल में कमाए 1,054 करोड़ रुपये, गंवाए मात्र 1.94 करोड़, जानें पूरा मामला

Published on: 05 Aug 2025 | Author: Kuldeep Sharma
1 मई 2021 से 13 जुलाई 2025 के बीच राज्य में फिशिंग, ओटीपी फ्रॉड, फर्जी नौकरी के नाम पर ठगी, नकली कस्टमर केयर और सोशल मीडिया पर फर्जी प्रोफाइल बनाकर की गई धोखाधड़ी से लोगों ने 1,054 करोड़ रुपये गंवाए. लेकिन पुलिस सिर्फ 0.18% यानी 1.94 करोड़ रुपये ही रिकवर कर पाई. जबकि इस अवधि में 105 करोड़ रुपये संदेहास्पद खातों में फ्रीज किए गए थे, जिनमें से बहुत कम हिस्सा वसूल हो सका.
राज्य में 2020 से अब तक साइबर ठगी से जुड़े 1,193 एफआईआर दर्ज की गईं. इनमें से सिर्फ 585 मामलों में चार्जशीट दाखिल हो पाई है, बाकी मामलों की जांच अधूरी है या वे खारिज हो चुके हैं. इससे साफ है कि पुलिस और साइबर अपराध नियंत्रण इकाई की क्षमता अपराधियों की तेजी और तकनीकी समझ के सामने कमजोर साबित हो रही है.
सोशल मीडिया बना सबसे बड़ा हथियार
बीते चार वर्षों में कुल साइबर अपराधों में से 37% से 53% मामले सिर्फ सोशल मीडिया के दुरुपयोग से जुड़े हैं. 2022 में कुल 1,021 मामलों में से 542 मामले सोशल मीडिया से जुड़े थे. 2023 में यह संख्या 428 थी, जबकि 2024 में 396 और 2025 में अब तक 242 मामले सामने आ चुके हैं. इनमें साइबर बुलीइंग, सेक्सटॉर्शन, फर्जी प्रोफाइल बनाकर ब्लैकमेलिंग जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं.
युवाओं को बनाया जा रहा है निशाना
सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि इन अपराधों का सबसे बड़ा शिकार युवा वर्ग है। 2022 में 70%, 2023 में 76%, 2024 में 65% और 2025 में अब तक 67% पीड़ित युवा हैं. वहीं, मामलों के निपटारे की दर लगातार गिर रही है. 2022 में यह दर 70% थी, जो 2025 में घटकर सिर्फ 27% रह गई है.
जवाबदेही और संसाधनों की कमी
भाजपा विधायक रीति पाठक के सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि बैंकिंग फ्रॉड और अन्य डिजिटल ठगी के मामले दूसरे नंबर पर हैं। ये आंकड़े यह स्पष्ट करते हैं कि राज्य की साइबर अपराध रोकथाम व्यवस्था अपराधियों की तकनीक और नेटवर्किंग के सामने कहीं नहीं ठहरती। जब तक प्रशिक्षण, संसाधनों का आधुनिकीकरण और जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की जाती, तब तक अपराध और न्याय के बीच की यह खाई और चौड़ी होती जाएगी.