एमजे अकबर की वापसी, 7 साल पहले 'MeToo' में आया था नाम, विदेश राज्य मंत्री के पद देना पड़ा था इस्तीफा

Published on: 19 May 2025 | Author: Gyanendra Sharma
जानेमाने पत्रकार और पूर्व राजनेता एमजे अकबर एक बार फिर सुर्खियों में हैं. केंद्र सरकार ने उन्हें वैश्विक मंच पर पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों को उजागर करने के लिए गठित सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया है. यह प्रतिनिधिमंडल आतंकवाद के खिलाफ भारत के मजबूत रुख को दुनिया के सामने रखेगा और हाल के पहलगाम आतंकी हमले तथा ऑपरेशन सिंदूर की सच्चाई को सामने लाएगा. सात साल पहले 2018 में मीटू आरोपों के चलते एमजे अकबर को विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था, लेकिन अब उनकी इस प्रतिनिधिमंडल में वापसी को उनकी राजनीतिक सक्रियता के नए अध्याय के रूप में देखा जा रहा है.
मोदी सरकार ने वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई को और मजबूत करने के लिए यह कदम उठाया है. इस प्रतिनिधिमंडल में विभिन्न दलों के प्रमुख नेता शामिल हैं, जो अलग-अलग देशों का दौरा करेंगे. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ओर से रवि शंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा, कांग्रेस से शशि थरूर, जनता दल (यूनाइटेड) से संजय कुमार झा, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) से कनिमोझी करुणानिधि, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) से सुप्रिया सुले और शिवसेना से श्रीकांत शिंदे इस अभियान का हिस्सा होंगे. एमजे अकबर को रवि शंकर प्रसाद की अगुवाई वाली टीम में शामिल किया गया है, जो यूरोपीय यूनियन और यूरोप के प्रमुख देशों जैसे यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जर्मनी, इटली और डेनमार्क का दौरा करेगी.
पाकिस्तान के खिलाफ मुखर रहे हैं एमजे अकबर
एमजे अकबर ने हमेशा आतंकवाद और पाकिस्तान की नीतियों के खिलाफ खुलकर अपनी बात रखी है. उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को भारत की सैन्य शक्ति और रणनीतिक कुशलता का प्रतीक बताया था. इसके अलावा, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की थी. अकबर ने कहा था कि पीएम मोदी असंभव को संभव बनाने की कला में माहिर हैं और उन्होंने पाकिस्तान को उसकी करतूतों का आईना दिखाया है. उनकी यह स्पष्टवादिता और वैश्विक मंचों पर भारत के पक्ष को मजबूती से रखने का अनुभव ही उन्हें इस प्रतिनिधिमंडल के लिए उपयुक्त बनाता है.
पत्रकारिता से राजनीति तक का सफर
एमजे अकबर का करियर पत्रकारिता और राजनीति के क्षेत्र में उल्लेखनीय रहा है. उन्होंने लंबे समय तक पत्रकारिता में अपनी पहचान बनाई और कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अहम भूमिका निभाई. बाद में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और 1989 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर बिहार के किशनगंज से लोकसभा चुनाव जीता. हालांकि, 1991 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. बाद में वे बीजेपी के साथ जुड़े और 2016 में उन्हें विदेश राज्य मंत्री बनाया गया. मीटू विवाद के बाद उनकी राजनीतिक सक्रियता कुछ समय के लिए कम हो गई थी, लेकिन इस प्रतिनिधिमंडल में उनकी वापसी ने फिर से चर्चाओं को हवा दी है.