'भारत सरकार ने समुंद्र में फेंके 43 रोहिंग्या', सुप्रीम कोर्ट ने की जनहित याचिका पर सुनवाई, जानें क्या कहा?

Published on: 16 May 2025 | Author: Sagar Bhardwaj
सुप्रीम कोर्ट ने 38 रोहिंग्या शरणार्थियों को कथित तौर पर देश से बाहर निकालने और अंडमान में समुद्र में फेंके जाने के आरोपों से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई की. याचिका में दावा किया गया है कि भारत सरकार ने इन शरणार्थियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया. इस मामले ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान खींचा है.
कोई ठोस सबूत नहीं
न्यायमूर्ति सूर्या कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें कुछ समय तक सुनीं. इसके बाद, कोर्ट ने इस याचिका को रोहिंग्या से संबंधित एक अन्य मामले के साथ जोड़ दिया, जिसकी सुनवाई 31 जुलाई 2025 को तीन-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष होनी है. कोर्ट ने याचिका में सबूतों की कमी पर सख्त टिप्पणी की और कहा कि निर्वासन के आरोपों का समर्थन करने वाली कोई ठोस सामग्री नहीं है.
आप ऐसी काल्पनिक कहानियां लेकर आते हैं
न्यायमूर्ति सूर्या कांत ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, “जब देश इस तरह के कठिन समय से गुजर रहा है, आप इस तरह की काल्पनिक कहानियां लेकर आते हैं.”
ठोस सबूत पेश करें
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना प्रारंभिक साक्ष्य के इस तरह के गंभीर आरोपों पर विचार करना मुश्किल है. पीठ ने कहा, “जब तक आरोपों का समर्थन कुछ प्रारंभिक सामग्री से नहीं होता, हमारे लिए तीन-न्यायाधीशों की पीठ के आदेश पर विचार करना कठिन है.” कोर्ट ने याचिकाकर्ता से ठोस सबूत पेश करने को कहा, ताकि मामले की गंभीरता को उचित रूप से परखा जा सके.
क्या था पूरा मामला
बता दें सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई थी जिसमें केंद्र सरकार पर आरोप लगाया गया था कि 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को हाथ-पैर बांधकर, उन्हें अंडमान ले जाकर समुद्र में फें दिया गया. याचिका में आरोप लगाया गया था कि सरकार ने रोहिंग्या शरणार्थियों को जबरन बाहर निकाला है और इन 43 रोहिंग्या शरणार्थियों में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल हैं. साथ ही इनमें कई लोग ऐसे भी हैं जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं. याचिका में मांग की गई थी कि इन शरणार्थियों को वापस दिल्ली लाया जाएगा और कस्टडी से रिहा किया जाए.