'ED सारी सीमाएं लांघ रही है, संविधान का कर रही है उल्लघंन', सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय एजेंसी को जमकर लताड़ा

Published on: 22 May 2025 | Author: Gyanendra Sharma
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु की सरकारी शराब कंपनी तस्माक (तमिलनाडु राज्य विपणन निगम) के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की जांच और छापेमारी पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी. भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने केंद्रीय एजेंसी के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की और ईडी की कार्रवाई को असंगत और असंवैधानिक पाया, क्योंकि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है. मुख्य न्यायाधीश गवई ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि ईडी एक राज्य निगम को निशाना बनाकर “सभी सीमाएं पार कर रहा है और संघीय ढांचे का उल्लंघनकर रहा है.
तमिलनाडु सरकार ने मंगलवार (20 मई) को मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. यह अपील मद्रास उच्च न्यायालय के 23 अप्रैल के फैसले के बाद आई है, जिसमें ईडी की जांच को आगे बढ़ने की अनुमति दी गई थी. ईडी ने तमिलनाडु में 1,000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले का आरोप लगाया है जहां डिस्टिलरियों ने शराब की आपूर्ति के ऑर्डर हासिल करने के लिए बेहिसाब नकदी दी.
हालांकि, तमिलनाडु ने कहा कि उसने सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय के माध्यम से 2014-2021 के बीच व्यक्तिगत आउटलेट ऑपरेटरों के खिलाफ पहले ही 41 एफआईआर दर्ज की हैं उसने शीर्ष अदालत को बताया था. तमिलनाडु सरकार ने तस्माक पर ईडी की छापेमारी के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर किया और कहा कि यह केंद्रीय एजेंसी की शक्तियों का अतिक्रमण है और संविधान का उल्लंघन है. तमिलनाडु ने ईडी पर राजनीतिक प्रतिशोध का भी आरोप लगाया और कहा कि छापे अवैध थे.
ईडी छापों के खिलाफ तमिलनाडु का तर्क
तमिलनाडु सरकार और तस्माक ने तर्क दिया कि ईडी अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर रहा है. राज्य ने यह भी दावा किया कि महिला कर्मचारियों सहित तस्माक के अधिकारियों और कर्मचारियों को तलाशी के दौरान उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और लंबे समय तक हिरासत में रखा गया, उनके फोन और व्यक्तिगत उपकरण जब्त कर लिए गए, जिससे उनकी गोपनीयता और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ.
डीएमके के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने भाजपा पर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए ईडी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया. तमिलनाडु सरकार और तस्माक ने ईडी की छापेमारी को शुरू में मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, जिसे खारिज कर दिया गया था जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय में अपील की गई.