ED की पावर को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, तीन जस्टिस की बेंच करेगी सुनवाई

Published on: 04 May 2025 | Author: Mayank Tiwari
सुप्रीम कोर्ट ने 2022 के अपने उस फैसले की समीक्षा के लिए तीन जजों की नई बेंच का गठन किया है, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तारी और संपत्ति कुर्क करने की शक्तियों को बरकरार रखा गया था.जिसमें जस्टिस सूर्या कांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की नई बेंच इस मामले में 7 मई को सुनवाई करेगी, इसमें 2022 के फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं पर विचार किया जाएगा.
जस्टिस रविकुमार के सेवानिवृत्त होने के बाद नया गठन
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पहले इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्या कांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच कर रही थी. हालांकि, जस्टिस रविकुमार 5 जनवरी को सेवानिवृत्त हो गए.6 मार्च को जब यह मामला दो जजों की बेंच के सामने लिस्टेड हुआ तो जस्टिस कांत ने वकीलों को बताया कि यह गलत तरीके से लिस्टेड हुआ था और आश्वासन दिया कि जल्द ही तीन जजों की नई बेंच इस मुद्दे पर सुनवाई करेगी.
2022 का फैसला: ED की शक्तियों को दी थी मंजूरी
जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए के तहत ईडी की गिरफ्तारी, संपत्ति कुर्क करने, तलाशी और जब्ती की शक्तियों को बरकरार रखा था. अगस्त 2022 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग वित्तीय प्रणाली के लिए “खतरा” है और यह कोई “साधारण अपराध” नहीं है. कोर्ट ने कहा कि ईडी के अधिकारी “पुलिस अधिकारी नहीं” हैं और प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) को आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत एफआईआर के समान नहीं माना जा सकता.
समीक्षा की मांग: दो पहलुओं पर पुनर्विचार
अगस्त 2022 में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति दी. कोर्ट ने कहा कि ईसीआईआर की कॉपी प्रदान न करना और निर्दोषता की धारणा का उलट होना “प्रथम दृष्टया” पुनर्विचार की आवश्यकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि गिरफ्तारी के समय ईडी द्वारा आधारों का खुलासा करना पर्याप्त है, और हर मामले में ईसीआईआर की कॉपी देना अनिवार्य नहीं है.
PMLA की धारा 45 पर कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए की धारा 45 को उचित ठहराया, जिसमें अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती माना गया है और जमानत के लिए दोहरी शर्तें हैं. कोर्ट ने कहा कि यह धारा मनमानी या अनुचित नहीं है. विपक्ष अक्सर आरोप लगाता है कि सरकार इस कानून का उपयोग अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए करती है.