लिट्टे से ट्रेनिंग, गुरिल्ला वॉर का मास्टरमाइंड: कौन था छत्तीसगढ़ में मारा गया माओवादी सरगना बसवराज?

Published on: 21 May 2025 | Author: Sagar Bhardwaj
छत्तीसगढ़ के अबुझमाड़ जंगलों में बुधवार को हुई एक बड़ी मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने वामपंथी उग्रवाद को करारा झटका दिया. इस ऑपरेशन में 26 माओवादियों के साथ-साथ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के महासचिव और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के प्रमुख नंबाला केशव राव, उर्फ बसवराज, को भी मार गिराया गया. बसवराज को भारत में माओवादी हमलों का मास्टरमाइंड माना जाता था, जिसने 2010 के दंतेवाड़ा नरसंहार में 76 सीआरपीएफ जवानों की हत्या और 2013 के जीरम घाटी हमले जैसे घातक हमलों की योजना बनाई थी.
बसवराज का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में जन्मे बसवराज ने वारंगल के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज (अब NIT वारंगल) से बी.टेक की डिग्री हासिल की थी. एक कुशल कबड्डी खिलाड़ी रहे बसवराज ने छात्र जीवन में ही वामपंथी विचारधारा को अपनाया और रैडिकल स्टूडेंट्स यूनियन (आरएसयू) के साथ सक्रिय रूप से जुड़ गए. 1980 में श्रीकाकुलम में छात्र संगठनों के बीच हुए संघर्ष के दौरान उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी. इसके बाद, वह अपने गांव से गायब हो गए और पूरी तरह से माओवादी आंदोलन में शामिल हो गए.
लिट्टे लड़ाकों से ली ट्रेनिंग
1980 के दशक में बासवराज ने आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी और विशाखापत्तनम जैसे क्षेत्रों में माओवादी प्रभाव का विस्तार किया. 1992 में उन्हें सीपीआई (एमएल) पीपुल्स वॉर के सेंट्रल कमेटी में शामिल किया गया. 2004 में सीपीआई (एमएल) पीपुल्स वॉर और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसीआई) के विलय के बाद बनी सीपीआई (माओवादी) में, बसवराज को सेंट्रल मिलिट्री कमीशन का प्रमुख बनाया गया. इस भूमिका में उन्होंने गुरिल्ला युद्ध की रणनीतियों को तैयार किया और कैडरों को आईईडी और घात लगाने की तकनीकों में प्रशिक्षित किया. खुफिया सूत्रों के अनुसार, 1980 के दशक के अंत में बस्तर के जंगलों में उन्हें पूर्व एलटीटीई लड़ाकों से विशेष प्रशिक्षण भी मिला था.
चार दशकों तक पुलिस की पकड़ से बाहर
बसवराज ने छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में हुए लगभग हर बड़े माओवादी हमले में अपनी भूमिका निभाई. 2018 में वरिष्ठ माओवादी नेता गणपति के इस्तीफे के बाद वह सीपीआई (माओवादी) के महासचिव बने. वह भारत के सबसे वांछित उग्रवादियों की सूची में शीर्ष पर थे, और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने उनकी गिरफ्तारी के लिए 10 लाख रुपये का इनाम रखा था. कई उपनामों का इस्तेमाल करते हुए, वह चार दशकों तक सुरक्षाबलों की पकड़ से बचते रहे.