जब भी बारिश होती है, दिल्ली डूब जाती है: क्यों बार-बार जलमग्न हो रही राजधानी, सिर्फ मौसम ही नहीं है इसका कारण

Published on: 02 Aug 2025 | Author: Kuldeep Sharma
दिल्ली में हर साल आने वाली बाढ़ अब एक सामान्य प्राकृतिक आपदा नहीं रही. ये अब एक मानवनिर्मित संकट का रूप ले चुकी है. 2023 की भयावह बाढ़ और 2024 में लगातार हो रही जलभराव की घटनाएं इस बात की गवाही देती हैं कि राजधानी के आधारभूत ढाँचे में गंभीर खामियाँ हैं. मौसम का बदला मिजाज तो एक वजह है, लेकिन उससे कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं खराब शहरी योजना, कमजोर ड्रेनेज सिस्टम और सिकुड़ते प्राकृतिक जलाशय.
दिल्ली कभी तालाबों और खेतों का शहर था, लेकिन अब वही ज़मीन कंक्रीट से ढक दी गई है. इससे बारिश का पानी ज़मीन में समाने की जगह सड़कों और गलियों में जमा होने लगा है. करोल बाग, कनॉट प्लेस, संगम विहार जैसी घनी बस्तियों में जलभराव आम हो गया है. वहीं, छतरपुर, नरेला, द्वारका जैसे बाहरी इलाके जो पहले प्राकृतिक बाढ़ अवरोधक थे, अब शहरी विकास की बलि चढ़ चुके हैं.
नालियों का जाल, पर बिना तालमेल
दिल्ली में 3,642 किलोमीटर लंबा ड्रेनेज नेटवर्क है, जिसे अलग-अलग एजेंसियाँ संभालती हैं- PWD, MCD, NDMC और DDA. इन एजेंसियों के बीच तालमेल की भारी कमी है. नालियाँ अक्सर कूड़े से भरी रहती हैं या फिर अवैध निर्माण से बाधित होती हैं. कई इलाकों में यह स्थिति इतनी खराब है कि मामूली बारिश में भी पानी निकलने का रास्ता नहीं मिलता.
औद्योगिक कचरा बन रहा नई मुसीबत
दिल्ली में हर दिन लगभग 32.79 मिलियन लीटर औद्योगिक कचरा निकलता है, लेकिन इसका बहुत कम हिस्सा ही ट्रीटमेंट प्लांट्स में ठीक से साफ हो पाता है. ट्रीटमेंट प्लांट्स की कुल क्षमता 212.3 MLD है, लेकिन वे सिर्फ 63.4 MLD कचरे को ही प्रोसेस कर पा रहे हैं. ये अपशिष्ट अक्सर ड्रेनेज सिस्टम में मिलकर स्थिति और बिगाड़ देता है.
जलवायु परिवर्तन और बदलती प्राथमिकताएँ
अब जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का स्वरूप भी बदल गया है, कम समय में तेज़ बारिश- ऐसे में दिल्ली की पुरानी ड्रेनेज व्यवस्था टिक नहीं पा रही है. रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि ड्रेनेज सिस्टम को मजबूत किया जाए, प्राकृतिक नालों की सफाई और पुनर्जीवन हो, जलाशयों पर अतिक्रमण रोका जाए और स्थानीय समुदायों को भी जागरूक किया जाए. जब तक ये कदम नहीं उठाए जाते, हर मानसून राजधानी के लिए नया संकट ला सकता है.